सिरसा,11 मार्च: समाचार पत्र की सफलता उसके पाठकों पर निर्भर करती है और पाठकों को वही समाचार पत्र आकर्षित करता है जिसकी भाषा आम बोलचाल वाली हो, गूढ़ साहित्यिक भाषा का प्रयोग करने वाला समाचार पत्र अधिक समय तक लोकप्रियता हासिल नहीं कर सकता। इसलिए पत्रकार और समाचार पत्र को सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह बात हरी भूमि समाचार पत्र के स्थानीय संपादक औमकार चौधरी ने चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय में 15 दिवसीय प्रिंट व साइबर मीडिया पर आधारित कार्यशाला के दौरान पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विद्यार्थियों को वेब कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए कही।
वेब कांफ्रेंसिंग के दौरान उन्होंने जहां विद्यार्थियों के साथ अपने अनूभव सांझा किए वहीं उनके सवालों के जवाब भी दिए। प्रिंट मीडिया के क्षैत्र में संभावनाओं के संबंध बताते हुए उन्होंने कहा कि यह क्षैत्र तेजी से विकास कर रहा है,इसलिए इसमें कैरियर के दृष्टिकोण से अपार संभावनाए हैं। एक विद्यार्थी द्वारा प्रिंट मीडिया में मिलने वाले वेतन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह समाचार पत्र के आकार और प्रकार पर निर्भर करता है। अंग्रेजी के समाचार पत्रों में प्रत्येक स्तर पर अपेक्षाकृत अच्छा वेतन मिलता है, हाल हि के वर्षों में वेतनमानों में सुधार हुआ है परंतु छोटे पत्रकारों की हालत अभी भी बहुत खराब है।
विद्यार्थियों को लेखन कला का कौशल विकसित करने के लिए उन्होंने ब्लॉग लिखने की सलाह दी और कहा कि यह कार्य उन्हें अपने प्रद्यापकों की देखरेख में करना चाहिए। एक विद्यार्थी ने नीरा राडिया टेप का जिक्र करते हुए जब पत्रकारों की साख में आई गिरावट संबंधी सवाल पूछा तो वे बोले कि पत्रकारों को कई बार अपने सूत्रों को बनाए रखने के लिए विवादस्पद स्थितियों का सामना करना पड़ता है परंतु ऐसा हमेशा नहीं होता। सांप्रदायिकता भड़काने में मीडिया की भूमिका पर उन्होंने कहा कि अयोध्या कांड के दौरान कुछ समाचार पत्रों ने सांप्रदायिकता को हवा दी थी परंतु अधिकांश ने उस दौरान भी अच्छी पत्रकारिता का परिचय दिया। ऐसी स्थिति में पत्रकार को सोच समझकर काम करना चाहिए। पत्रकारिता और लेखन के संबंध में वे बोले कि एक पत्रकार को लेखन की सामान्य जानकारी होनी आवश्यक है, एक अच्छा लेखक हि अच्छा पत्रकार हो सकता है।
खोजी पत्रकार के संबंध में उन्होंनें कहा कि उसमें जोखिम उठाने का जज्बा, पर्याप्त धैर्य तथा आत्मविश्वास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया संस्थानों को विद्यार्थियों के व्यवहारिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन पर ध्यान देना चाहिए तथा मीडिया के अनुभवी प्रद्यापकों की नियुक्ति करनी चाहिए या समय-समय पर उन्हें मीडिया उद्योग में प्रशिक्षण लेना चाहिए। अंत में विभागाध्यक्ष विरेंद्र सिहं चौहान ने वरिष्ठ पत्रकार औमकार चौधरी का धन्यवाद करते हुए विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे विशेषज्ञ द्वारा बताई गई बातों पर गौर करें तथा उनके अनुभवों से सीखनें की कोशीश करें। इस अवसर पर कार्यशाला के समन्वयक प्रद्यापक कृष्ण कुमार, सन्नी गुप्ता, सुरेंद्र कुमार, विकास सहारण, राममेहर तथा प्राद्यापिका पूनम कालेरा भी उपस्थित थे।
वेब कांफ्रेंसिंग के दौरान उन्होंने जहां विद्यार्थियों के साथ अपने अनूभव सांझा किए वहीं उनके सवालों के जवाब भी दिए। प्रिंट मीडिया के क्षैत्र में संभावनाओं के संबंध बताते हुए उन्होंने कहा कि यह क्षैत्र तेजी से विकास कर रहा है,इसलिए इसमें कैरियर के दृष्टिकोण से अपार संभावनाए हैं। एक विद्यार्थी द्वारा प्रिंट मीडिया में मिलने वाले वेतन के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह समाचार पत्र के आकार और प्रकार पर निर्भर करता है। अंग्रेजी के समाचार पत्रों में प्रत्येक स्तर पर अपेक्षाकृत अच्छा वेतन मिलता है, हाल हि के वर्षों में वेतनमानों में सुधार हुआ है परंतु छोटे पत्रकारों की हालत अभी भी बहुत खराब है।
विद्यार्थियों को लेखन कला का कौशल विकसित करने के लिए उन्होंने ब्लॉग लिखने की सलाह दी और कहा कि यह कार्य उन्हें अपने प्रद्यापकों की देखरेख में करना चाहिए। एक विद्यार्थी ने नीरा राडिया टेप का जिक्र करते हुए जब पत्रकारों की साख में आई गिरावट संबंधी सवाल पूछा तो वे बोले कि पत्रकारों को कई बार अपने सूत्रों को बनाए रखने के लिए विवादस्पद स्थितियों का सामना करना पड़ता है परंतु ऐसा हमेशा नहीं होता। सांप्रदायिकता भड़काने में मीडिया की भूमिका पर उन्होंने कहा कि अयोध्या कांड के दौरान कुछ समाचार पत्रों ने सांप्रदायिकता को हवा दी थी परंतु अधिकांश ने उस दौरान भी अच्छी पत्रकारिता का परिचय दिया। ऐसी स्थिति में पत्रकार को सोच समझकर काम करना चाहिए। पत्रकारिता और लेखन के संबंध में वे बोले कि एक पत्रकार को लेखन की सामान्य जानकारी होनी आवश्यक है, एक अच्छा लेखक हि अच्छा पत्रकार हो सकता है।
खोजी पत्रकार के संबंध में उन्होंनें कहा कि उसमें जोखिम उठाने का जज्बा, पर्याप्त धैर्य तथा आत्मविश्वास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया संस्थानों को विद्यार्थियों के व्यवहारिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन पर ध्यान देना चाहिए तथा मीडिया के अनुभवी प्रद्यापकों की नियुक्ति करनी चाहिए या समय-समय पर उन्हें मीडिया उद्योग में प्रशिक्षण लेना चाहिए। अंत में विभागाध्यक्ष विरेंद्र सिहं चौहान ने वरिष्ठ पत्रकार औमकार चौधरी का धन्यवाद करते हुए विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे विशेषज्ञ द्वारा बताई गई बातों पर गौर करें तथा उनके अनुभवों से सीखनें की कोशीश करें। इस अवसर पर कार्यशाला के समन्वयक प्रद्यापक कृष्ण कुमार, सन्नी गुप्ता, सुरेंद्र कुमार, विकास सहारण, राममेहर तथा प्राद्यापिका पूनम कालेरा भी उपस्थित थे।
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