सिरसा , 14 मार्च। भारतीय पत्रकारिता ने विकास के अनेक आयाम स्थापित किए हैं। परंतु प्रेस वार्ता के वास्तविक अर्थ से हम अभी भी अनभिज्ञ हैं। 90 फीसदी से अधिक पत्रकार प्रेस वार्ता के दौरान प्रश्न ही नहीं पूछते।यह पत्रकारों के लिए चिंता का विषय है, भावी पत्रकारों को चाहिए कि वे इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए इसे दूर करने का प्रयास करें। यह कहना है चौ। देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिहं चौहान का।
वे यहां अपने विभाग के प्रशिक्षु पत्रकारों को प्रिंट व साइबर मीडिया कार्यशाला के दौरान सम्बोधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि प्रश्न पूछना पत्रकार का जन्मसिद्ध अधिकार है, परंतु प्रश्न स्पष्ट तथा संक्षिप्त होने चाहिए। आयोजकों के साथ किसी भी प्रकार की बहस से बचना चाहिए। कड़़वी से कड़वी बात भी शालीनता के साथ पूछनी चाहिए। यदि जवाब न भी मिले तो जिद्द नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकार को शोध के बाद ही प्रेस वार्ता में जाना चाहिए, ताकि सटीक तथा विषय के अनुरूप प्रश्न पूछे जा सके। हमें बिना किसी पूर्वाग्रह के निश्पक्षता से प्रश्न पूछने चाहिए।
विद्यार्थियों में सवाल पूछने की कला विकसित करने के लिए एक मोक प्रेस वार्ता का आयोजन भी किया गया। इसमें कार्यशाला के संचालक वीरेंद्र सिहं चौहान ने विद्यार्थियों के सवालों के जवाब दिए। एक विद्यार्थी द्वारा भ्रष्टाचार समाप्त करने में मीडिया की भूमिका पर उन्होंने कहा, कि मीडिया का काम केवल सच्चाई को उजागर करना है। शेष कार्य न्याय पालिका तथा कार्यपालिका का है। पत्रकारों द्वारा की जाने वाली लॉबिंग के संबंध में वे बोले कि यह सब कार्य केवल अप्रिशिक्षित पत्रकारों द्वारा ही किया जाता है। मझे हुए पत्रकार ऐसा नहीं करते।
कार्यशाला संचालक ने एडिटर गिल्ड तथा प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के संबंध में भी विस्तार से जानकारी दी। इसके साथ-साथ ब्लॉग डिजाइनिंग की सामान्य जानकारी भी विद्यार्थियों को दी गई। सुबह के सत्र में पेज डिजायनर अनिल कक्कड़ ने पृष्ठांकन की व्यवहारिक जानकारी से विद्यार्थियों को अवगत करवाया। इस अवसर पर प्राध्यापिका पूनम कालेरा तथा प्राध्यापक कृष्ण कुमार, सन्नी गुप्ता , सुरेंद्र कुमार, विकास सहारण तथा राममेहर भी उपस्थित थे।
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