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Monday, March 21, 2011

बिन पानी सब सून

इस दूनिया के क्या क्या रंग है, इसे समझना बहुत मुश्किल है। और इससे भी मुश्किल है इंसान की फितरत को समझना। स्वार्थी और खुदगर्ज होना तो कोई हमसे सीखे। अभी होली से पहले हमने जो संकल्प लिए उससे तो एक बारगी लगा जैसे हमने ही जल बचाने का बीड़ा उठा लिया हो। लेकिन हम भूल गये थे कि ये रघुकुल नहीं हैं। ये हमारा अपना युग, कलयुग है। यहां अच्छा करना तो दूर सोचना भी पाप है। और हमारे युग की सबसे बड़ी निशानी तो यही है कि वादे और जिम्मेदारियां जितनी जल्दी भुला दी जाए उतना ही अच्छा है।यही हमने होली पर किया, जमकर जल बहाया । एक पल भी हमने ये नहीं सोचा की आखिर हम नुकसान किसका कर रहे हैं।
हम बहुत स्वार्थी हैं। पर मुझे तो लगता है कि हमें स्वार्थी होना भी नहीं आता। पानी को व्यर्थ बहाते वक्त हम अपने कल के स्वार्थ को क्यों भूल जाते हैं। तो क्या अब मुझे आपको स्वार्थी होना सीखाना पड़ेगा ? अपने लिए न सही तो अपनों के लिए स्वार्थी हो जाइए। जिस दिन आपने यह सीख लीया, समझो आपका धरती पर आना सफल हो गया। आज जल दिवस है। तो सोचिए, की इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? धरती का जल स्तर लगातार गीरता जा रहा है। का तापमान बढ़ रहा है, हर तरफ प्राकृतिक विपदाओं का कहर है। और हम हैं कि समझते हि नहीं।
अपने आप से भागना छोडिए, अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पहचानना सीखीए। वरना हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब देंगे। तो आइए इस जल दिवस पर ये कोशिश करें कि हम अपने स्वार्थ के लिए ही सही पर जल को बचाएंगें। यदि हम सीर्फ इतना भर भी कर पाए तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून , पानी गए ऊबरे मोती मानस चूनतो आइए प्रकृति की अमुल्य निधि जल को बचाने का प्रयास करें

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