किसी महान कवि ने कहा है- जब आए तुम इस जग में, जग हंसा तुम रोये। कुछ ऐसी करनी कर चलो तुम हंसो जग रोये। यह काम इस महान कलमकार ने अपनी लेखनी के दम पर कर दिखाया है। तभी तो मैं कह रहा हुं कि आलोक तोमर जिंदा है। वो जिंदा है हमारी यादों में, अपने लिखे लेखों में और अपने जैसे कलमकारों की कलम की स्याही में। कुछ लोगों का जीवन भी मौत के जैसा होता है और कुछ लोग की मौत एक नये जीवन की तरह। आलोक तोमर उन लोगों में से हैं जिनकी मृत्यु से एक नये जीवन का सूत्रपात होता है।
बेशक वो आज इस दूनिया में नहीं हैं। पर हर काई उनके बारे में जानने को उत्सुक है। कोई इंटरनेट की दूनिया में उन्हें ढूंढ़ रहा है तो को अखबार के पन्नों में। लेकिन वहां कुछ है तो सीर्फ उनकी स्मृतियां। बेबाक और धारदार पत्रकारिता की पहचान रहे आलोक तोमर भले ही सोमवार को पंचतत्व में वीलीन हो गये।पर उन्होंने अपने पीछे लेखन का एक अंदाज छोड़ा है जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
27 दिसंबर 1960 को मध्यप्रदेश के मरैना जिले के रछैड़ गावों में इस महान पत्रकार का जन्म हुआ। जिसने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी। राष्ट्रवादी विचारधारा के अखबार स्वदेश से इन्होंने अपने पत्रकारिता करियर की शुरूआत की। पर उन्हें विशेष पहचान दिलाई जनसत्ता ने। जनसत्ता से पहले उन्होंने यूएनआइ समचार एजेंसी के साथ भी काम किया। वर्ष 2000 में उन्होंने डेटलाइन नामक इंटरनेट न्यूज एजेंसी की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने समाचार पत्र व पत्रिकाओं के लिए समाचार स्त्रोत की भूमिका निभाई।
चर्चित टीवी धारावाहिक जी मंत्री जी की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी।इसी प्रकार बेहद लोकप्रिय टीवी गेम शो कौन बनेगा करोड़पति का स्वरूप तय करने में उन्होंने केंद्रिय भूमिका निभाई थी। केबीसी-1 के सारे सवाल उनकी टीम के द्वारा ही तैयार किए जाते थे। लागों की जुबान पर छाने वाले जुमले कम्प्युटर जी लॉक किया जाए को उन्होंने ही गढ़ा था। आज जब उनके बारे में इतना कुछ जाना है तो लगता है जैसे वो कहीं गये नहीं हैं। आलोक तोमर जैसा पत्रकार शायद ही अब कोई हो पाएगा जो अपनी प्रखर पत्रकारिता के दम पर जाना जाएगा। वो चला गया एक नया जन्म लेने को, छोड़कर अपने पीछे एक जमाना रोने को।
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