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Wednesday, December 1, 2010

पढाई के बोझ से कमजोर होती आंखें- डा0 चौधरी



(प्रभात इंदौरा) सूचना प्रोद्यौगिकी के इस युग में बच्चे कंप्यूटर तथा टीवी के आदी होते जा रहे हैं। ये घन्टों इनके साथ बिताते है, जिससे विभिन्न प्रकार की आंखों संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसी तरह लगातार बढ़ रहा पढाई का बोझ भी इसे और भी गंभीर बना रहा है। यह बात नैत्र रोग विशेषज्ञ डा0 ओपी चौधरी ने सामुदायिक रेडियो स्टेशन 90.4 एफ एम पर कार्यक्रम हैलो सिरसा के दौरान सुरेंन्द्र सिंह के साथ बातचीत के दौरान कही। प्रस्तुत है इस बातचीत के संपादित अंश-
प्रश्न-नेत्र रोग क्या है?
उत्तर-हमारी आंखों की सामान्य या प्राकृतिक अवस्था का किसी भी तरह से विकृत या प्रभावित होना नेत्र रोग कहलाएगा। इनमें आंखों का लाल होना, मोतिया बिन्द, रतौंधी, दूरदृष्टि या निकटदृष्टि दोष होना, एलर्जी, आई लू जैसे रोग आते हैं। बढ़ रहे प्रदूषण के कारण नेत्र रोगों में इजाफा हो रहा है।
प्रश्न-आई लू क्या है। इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर-आई लू एक वायरल डिसॉर्ड्र है। यह मु यत: बारिश के दिनों में एक विशेष प्रकार के वायरस की वजह से फैलता है। एक बार
होने पर इसका कोई ईलाज नहीं है। यह अपने आप ठीक हो जाता है। परन्तु कुछ सावधानियां रखकर इससे बचा जा सकता है। जब यह
वायरस फैला हो तो भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए। प्रभावित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखें, यह हवा के द्वारा भी फैलता
है।
प्रश्न- आंखों की एलर्जी के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर- एलर्जी का मु य कारण सूर्य की पैराबैंगनी किरणें है। एलर्जी मु यत: गर्मी के समय होती है। इससे बचने के लिए गुणवता वाले
धूप के चश्मे का प्रयोग करना चाहिए। बार -बार ठन्डे पानी से आंखों में छींटे मारने चाहिए।
प्रश्न- हम अपनी आंखों की देखभाल किस तरह कर सकते है?
उत्तर-आंखे हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इन्ही की बदौलत हम इस खूबसूरत दूनिया को देख पाते हैं। इसलिए हमें अपनी
आंखों की विशेष देखभाल करनी चाहिए। इनके स्वास्थ्य के लिए जहां साफ सफाई अति आवश्यक है वहीं आहार में विटामिन ए की प्रचुर
मात्रा होना आवश्यक है। यह हमें गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियां, जूस आदि से प्राप्त होता है।
प्रश्न-चश्मे के प्रयोग में क्या क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
उत्तर- चश्मे का प्रयोग करते समय हमें बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। हमें चश्मे का चुनाव करते समय उसकी गुणवत्ता को
परखना चाहिए। फैशन को तवज्जो ना देकर आंखों की सहूलियत और आवश्यकता अनुसार की चश्मे का चुनाव करना चाहिए। चश्मे के
फै्रम का चुनाव भी हमें चिकित्सक के सुझाव से ही करना चाहिए। साथ साथ चश्मे की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्न- नजऱ कमजोर होने पर चश्मे के अतिरिक्त और क्या क्या विकल्प हो सकते हैं?
उत्तर- चश्मा लगाने के अतिरिक्त कान्ॅटेक्ट लैंस को प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन कॉन्टेक्ट लैंस के विकल्प में हमें ज्यादा
सावधानियां बरतनी पड़ती है क्योंकि धूल मिट्टी के चलते कॉन्टेक्ट लैंस के कारण आंखों में जलन होने लगती है जिसके कारण आंखों
की पुतलियां भी प्रभावित होती है। इसी के साथ आंखों का आप्रेशन भी बेहतर विकल्प हो सकता है। इसमें जोखिम अधिक रहता है।
प्रश्न- बच्चों में बढ़ रही आंखों की समस्याओं के क्या कारण है?
उत्तर- इसका मु य कारण लगातार बढ़ता पढाई का बोझ, टीवी के साथ अत्यधिक लगाव, प्रदूषण भी इसका अहम कारण है। भारत में
लोग अपने बच्चों को छोटी उम्र में स्कूल में भेज देते हैं। जबकि यूरोप में 6 वर्ष के बच्चो को स्कूल में भेजा जाता है।
कार्यक्रम के अन्त में श्रोताओं से कहा कि हमारी ये आंखें ही है जो हमें देश दूनिया दिखाती है। इनके बिना जीवन अधूरा है। इसलिए
इनकी देखभाल में हमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। किसी भी प्रकार की नेत्र स बंधी समस्या होने पर विश्वसनीय
नेत्र रोग विशेषज्ञ से सलाह मशवरा करना चाहिए।



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