लगातार बढ़ रही बेरोजगारी को दूर करने के लिए मछली पालन का कार्य काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जहां बेरोजगार युवा इससे अच्छी कमाई कर सकते है,वहीं किसान भी इस कार्य को अतिरिक्त व्यवसाय के रुप में अपना सकता है।इस व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिए प्रकार की सहायता प्रदान करती है। ये वाक्य मत्स्य पालन अधिकारी बृजमोहन शर्मा ने चौधरी देविलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो केन्द्र 90.4 एफ एम के कार्यक्रम ‘हैलो सिरसा‘ में सुरेन्द्र कुमार से बातचीत के दौरान कहे।
कार्यक्रम की शुरुआत में बृजमोहन शर्मा ने मछली पालन व्यवसाय की विभिन्न आवश्यकताओं के बारे में श्रोताओं को जानकारी दी। तालाब के क्षेत्र संबंधी सवाल का जवाब देते हुए मत्स्य अधिकारी ने कहा कि हरियाणा में दो तरह के तालाब मछली पालन के लिए प्रयुक्त है। इनमें एक तो पंचायती तालाब है जो कि पट्टे पर दिए जाते है और दूसरी तरह के स्वंय के तालाब है। तालाब का आकार एक से ढाई एकड़ का हो सकता है, और जहां तक सरकारी सहायता की बात है तो इसके लिए 3 लाख रुपऐ तक का ऋण मिल सकता है, जिस पर सरकार द्वारा 20 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। वहीं तालाब की मुरम्मत के लिए भी 60 हजार रुपये तक का लोन प्राप्त किया जा सकता है।
पानी की जांच संबंधी सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा कि मछली पालन करने से पहले किसान को पानी तथा मिट्टी की जंाच करवानी चाहिए, क्योंकि बालु मिट्टी वाली जगह पर मछली पालन नहीं किया जा सकता। यह जांच जल कृषि अनुसंधान संस्थान में मात्र 50 रुपये की फीस देकर करवाई जा सकती है। बीज की उपलब्धता के बारे में अधिकारी ने कहा कि हमारे यहां तीन प्रकार की भारतीय मछली जिनमें राहू, कतला, व मिर्गल है तथा कॉमन कार्प व ग्रास कार्प नामक विदेशी मछली पाली जाती है। इनका बीज 65 रूपये प्रति हजार के मूल्य पर उपलब्ध करवाया है। यह बीज ओटू स्थित ब्रीडिंग सेंटर पर तैयार किया जाता है। मछलियों की खुराक के बारे में जानकारी देते हुए उन्होनें कहा कि खुराक में सरसों की खली, राइस ब्रान, गोबर आदि शामिल करना चाहिए। इसके अतिरिक्त मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने के लिए इसमें चुना, यूरिया तथा सुपरफॉस्फेट को मिलाना चाहिए। यही नहीं मछलियों को खुराक इस तरह से मिलनी चाहिए कि सभी प्रकार की मछलियों को ये उपलब्ध हो सकें। क्योंकि कुछ मछलियां तली से खुराक लेती है, कुछ मध्य से, कुछ उपरी जल से तो कुछ किनारों से। इसलिए किसानों को इसकी अच्छी जानकारी होना आवश्यक है।
मछलियों की विभिन्न समस्याओं पर उन्होने कहा कि मई -जून में आक्सीजन की कमी के मछलियां मर जाती है इसलिए किसानों को इस समय कृत्रिम आक्सीजन को देने का प्रबंध करना चाहिए। या एरिएटर का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पानी को उंचाई से गिराकर भी आक्सीजन की मात्रा को पानी में बढ़ाया जा सकता है। मछलियों के मुंह तथा पूंछ गलने की स्थिति में पानी का एक्सचेंज करना चाहिए या एमाक्यूल का घोल तथा वीटामिन ए की गोलियां पानी में डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त ड्रॅाप्सी रोग जिसमे भोजन की कमी से मछलियों का शरीर पतला हो जाता है इस स्थिति में 10 किलोग्राम चूना प्रति हैक्टेयर की दर से पानी में डालना चाहिए। मत्स्य अधिकारी ने इस बात पर बल दिया कि इस व्यवसाय से काफी अच्छी कमाई की जा सकती है। लेकिन इसके लिए वैज्ञानिक तौर तरीके अपनाने चाहिए। ऐसा करने से पांच- सात टन प्रति हैक्टेयर आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए मछली पालन के साथ- साथ सूअर पालन तथा बतख पालन भी आसानी से करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता हैै।
एक श्रोता द्वारा मछली की बिक्री सम्बंधी सवाल पर उन्होने कहा कि किसान मछलियों की बिक्री की मामले में स्वतंत्र है। वह जैसे चाहे उन्हें वैसे बेच सकता है। इसके अलावा उन्होने गंदे पानी मछलियों को स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक बताया। उनके अनुसार गंदे पानी की मछलियां भोजन समय अनेक प्रकार की गंदगी को भी निगल जाती है। इस समस्या से बचने के लिए पानी का शुद्धिकरण करवाना चाहिए। उसके बाद ही मछली पालन करना चाहिए। लेकिन इस व्यवसाय में आने से पहले उन्होने प्रशिक्षण लेने की बात पर विशेष जोर दिया। उनके अनुसार मछली पालन के लिए उचित प्रशिक्षण परम आवश्यक है। यह प्रशिक्षण हिसार र्में िस्थत एक्वा ट्रेनिंग रिर्सच संस्थान में दिया जाता हैै। यही नहीं इस दौरान 100 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रशिक्षण भत्ता तथा एक बार को आने जाने का किराया भी प्रशिक्षणार्थी को दिया जाता है।
इस प्रकार सिरसा के मत्स्य अधिकारी बृज मोहन शर्मा ने कार्यक्रम हैलो सिरसा के माध्यम से मछली पालन व्यवसाय से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां श्रोताओं से सांझी की और विभिन्न
जिज्ञासाओं को भी शांत किया तथा अंत में बेरोजगार युवाओं को इस व्यवसाय को अपनाने की भी
अपील की।
जिज्ञासाओं को भी शांत किया तथा अंत में बेरोजगार युवाओं को इस व्यवसाय को अपनाने की भी
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