सोने की चीड़िया था कभी जो
था विश्व का सरताज कभी
विश्व गुरू कहलाता था जो
करता था जगत पर राज कभी .
था जो देवों की जन्म कभी
संतों की था जो कर्म भूमि कभी
था जहां प्रेम का वास कभी.
जो धरती पर था स्वर्ग कभी
जहां प्रेम की गंगा बहती थी
हर दिल में अनुराग बसता था कभी.
अब सोने की चीड़िया हुई पिंजर
छिना ताज, सीना हुआ जर्जर.
अपनों ने ही घोंपा है मेरे देश के सीने में खंजर
आजादी के बाद भी है , गुलामी का सा मंजर.
गांधी, सुभाष ,भगत के सपने हुए चूर चूर यहां पर
वो प्रेम और त्याग नजर नहीं आता दूर दूर यहां पर.
धर्म और सत्ता के नाम पर अब होते दंगे रोज यहां पर.
हर काम में भ्रष्टाचार और हर चीज में मिलावट
सच्चाई का मिट चुका निशां,हर रिश्ता महज दिखावट.
अनगिनत मुखोटों में लोग भूले असली पहचान यहां
बस रह गई औपचारिकताएं, था गहरा विश्वास जहां.
कहां से चले थे और पहुंच गए प्रभात कहां
अब तुम भी सोचो बंधु प्यारे क्या थे कभी
और क्या हैं अभी ?
. . . प्रभात इंदौरा
था विश्व का सरताज कभी
विश्व गुरू कहलाता था जो
करता था जगत पर राज कभी .
था जो देवों की जन्म कभी
संतों की था जो कर्म भूमि कभी
था जहां प्रेम का वास कभी.
जो धरती पर था स्वर्ग कभी
जहां प्रेम की गंगा बहती थी
हर दिल में अनुराग बसता था कभी.
अब सोने की चीड़िया हुई पिंजर
छिना ताज, सीना हुआ जर्जर.
अपनों ने ही घोंपा है मेरे देश के सीने में खंजर
आजादी के बाद भी है , गुलामी का सा मंजर.
गांधी, सुभाष ,भगत के सपने हुए चूर चूर यहां पर
वो प्रेम और त्याग नजर नहीं आता दूर दूर यहां पर.
धर्म और सत्ता के नाम पर अब होते दंगे रोज यहां पर.
हर काम में भ्रष्टाचार और हर चीज में मिलावट
सच्चाई का मिट चुका निशां,हर रिश्ता महज दिखावट.
अनगिनत मुखोटों में लोग भूले असली पहचान यहां
बस रह गई औपचारिकताएं, था गहरा विश्वास जहां.
कहां से चले थे और पहुंच गए प्रभात कहां
अब तुम भी सोचो बंधु प्यारे क्या थे कभी
और क्या हैं अभी ?
. . . प्रभात इंदौरा
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