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Tuesday, March 29, 2011

बढीं हैं उपसंपादक की जिम्मेदारियां-डॉ. जोगेंद्र सिहं

सिरसा,30 मार्च। तकनीक और प्रोद्यौगिकी के विकास ने मीडिया को अत्याधिक प्रभावशाली और उन्नत बनाया है। आज समाचार पत्र उद्योग में हर कार्य कम्प्यूटर की मदद से हो रहा है। समाचार पत्र उद्योग को कंप्यूटर के कारण बहुत लाभ पहुंचा है। परंतु इसके कारण उपसंपादक का कार्य बहुत बढ़ गया है। अब एक उपसंपादक को लेखन, संपादन, पृष्ठांकन और प्रूफरीडिंग सभी प्रकार की भूमिकाएं निभानी पड़ती है। दैनिक ट्रिब्यून के वरिष्ठ उपसंपादक डॉ. जोगेंद्र सिहं ने विद्यार्थियों से बातचीत के दौरान ये उदगार व्यक्त किए। वे चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से प्रिंट साइबर मीडिया कार्यशाला के दौरान रूबरू हुए।
डॉ. सिहं ने उपसंपादन में करीयर और एक उपसंपादक के कार्यों पर प्रशिक्षु पत्रकारों से खुलकर बातचीत की। उन्होंने कहा कि उपसंपादक किसी भी समाचार पत्र की रीढ़ होता है। खबरों को तराशने और संवारने की जिम्मेदारी इसी की होती है। यही समाचार पत्र की आवश्यकता के अनुसार समाचारो का चयन और उनके स्थान निर्धारण की जिम्मेदारी भी निभाता है। डॉ. सिहं ने समाचार पत्र की डेस्क की कार्यप्रणाली में आये बदलावों पर भी विद्यार्थियों से अपने अनुभव सांझा किए। उन्होंने कहा कि आजकल अधिकांश समाचार पत्रों में डेस्क का सारा कार्य कम्प्यूटर पर ही होता है। इसलिए इसमें रोजगार पाने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों को कंप्यूटर की सामान्य जानकारी और टाइपिंग में निपुणता परमावश्यक है।डॉ. जोगेंद्र सिहं ने कहा कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, यदि आप में लगन है और आप उद्योग की आवश्यकता के अनुसार कार्य करने की क्षमता रखते हैं, तो अपकी सफलता सुनिश्चित है। उन्होंने कहा कि पत्रकार को समाचारों की एबीसी यानि परिशुद्धता,संक्षिप्तता और सत्यता स्पष्टता का ज्ञान होना आवश्यक है।
डॉ. सिहं ने इस दौरान प्रशिक्षु पत्रकारों के उपसंपादन और पत्रकारिता से जुड़े अनेक सवालो के जवाब भी दिए। रोजगार के अवसरो संबंधी एक सवाल के जवाब में वे बोले कि कुशल और दक्ष लोगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने फीचर संपादक की समाचार पत्रों में बढ़ती मांग के संबंध में भी विद्यार्थियों की जानकारी दी।
कार्यशाला के संचालक और विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिहं चौहान ने भी विद्यार्थियों को उपसंपादन के कार्यों की बारीकियों से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि उपसंपादक को खबरों की समझ होनी चाहिए। उसे अपनी रचनात्मकता के द्वारा खबरों में जान डालनी आनी चाहिए। इस अवसर पर शिक्षकगण सन्नी गुप्ता, कृष्ण कुमार, राममेहर पालवा व डॉ. ब्रह्मलता भी उपस्थित थे।

सुनीतनामा-प्रभात कहिन

हाथ में कैमरा,बैग गले में जिसके हर वक्त है रहता।
शर्म नाम की चीज नहीं है,सबको बेबी-बेबी कहता।
समझाने से कुछ समझ ना आये, अक्ल बेचकर सबकी खाये।
एक क्विंटल बोझ धरा पर,पर किसी के काम ना आये।
खुद की समझ कुछ आता नही, पर सभी को पाठ पढाये।
बेमतलब सेल्यूट मारे, सब गुरूजन इससे हारे।
दिमाग नाम की चीज नहीं है, हर वक्त सताये और सिर खाये।
क्या चीज खुदा ने बनाई, किसी को कुछ भी समझ न आये।
है यही दुआ और फरीयाद यही, ऐसी बला से भगवान बचाए।
एक बात समझ नहीं आये, क्या सोच के ऐसे नमूने बनाये।
वो खुदा भी रो रहा होगा, अपने इस आविष्कार पर, आंसु बहा रहा होगा।
घरवालों की मत पूछो इसको कैसे झेल रहें होंगे।
हर वक्त इसे दूर रखने की, योजना बुन रहे होंगें।
बंदर बनाना,गधा बनाना,पर ऐसे इंसान धरा पर, ऐ खुदा मत और बनाना।
हे सूनीत सिरखाने भईया, हम पर जरा दया बरसाना।
हम तुम्हारे अपने है, इतना तो ख्याल करना ।
और किसी से तुम नहीं डरते,पर उस खुदा से डरना।
कुछ अच्छाइयां तुझमें भी है, पर वो तेरी कारस्तानी के आगे बहुत छोटी लग रही है।
अब भी वक्त है संभल ले बंधु।
खुद की सोच या मत सोच।
पर हमको तो बख्श दे बंधु।
पर हमको तो बख्श दे बंधु।।
उस खुदा की रहमत देखो, कुछ खूबिया भी बख्सी तुझको।
जिद्द और लगन तुझमें भरी पड़ी है।
थोड़ी सी समझ और सही प्रयास
तेरी नईया पार लगा देंगें।
तु तो तर जाएगा बंधु । हम भी चैन से जी लेंगे।


Wednesday, March 23, 2011

खोजी पत्रकारिता- संभावनाओं का अनंत आकाश

सिरसा,15 मार्च। चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय में चल रही प्रिंट व साइबर मीडिया कार्यशाला का आठवां दिन खोजी पत्रकारिता के नाम रहा। खोजी पत्रकार तथा समरघोष के स्थानीय संपादक ऋषि पांडेय ने प्रशिक्षु पत्रकारों को इसकी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि खोजी पत्रकारिता नारीयल की तरह है। इसकी अंदरुनी मीठास को वही हासिल कर सकता है, जो उपरी कठोर आवरण को तोड़ने का मादा रखता हो। जो विद्यार्थी कड़ी मेहनत और कुछ कर गुजरने का जज्बा रखता हो, उसके लिए यह क्षेत्र उपयुक्त है। प्रस्तुत है ऋषि पांडे व वद्यार्थियों की बातचीत के मुख्य अंश-

रोजगार की संभावनाएं-
ऋषि पांडेय ने बताया कि इस क्षेत्र में रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं। खोजी पत्रकारिता में विद्यार्थी एक ट्रेनी के रुप में शुरुआत कर सकता है। मेहनत के द्वारा व्यक्ति अपनी अलग तथा विशिष्ट पहचान ही नहीं बना सकता बल्कि अच्छा वेतन भी पा सकता है। रोज नये नये चैनल तथा समचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। इसलिए इस क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर हैं।

किशमिस नहीं अखरोट-
खोजी पत्रकारिता किशमिस नहीं अखरोट की तरह है। इसमें समाचार संकलन के दौरान पत्रकार को अनेक चुनोतियों का सामना करना पड़ता है। आपको जोखिम उठाने के लिए हर समय तैयार रहना होगा। लेकिन यदि आपने एक बार समूद्र में गोता लगाने की सोच ली हो तो फिर डूबने से नहीं घबराना चाहिए। जब आपको तैरना आ जाता है तो गहराई कोइ मायने नहीं रखती।आप सफलता की सीढ़ियां चढ़तें जाएंगें।

समय के महत्व को समझें-
मीडिया में समय का बहुत महत्व है। घड़ी की सुई मौत की सुई की भांति होती है। विद्यार्थि जीवन की लापरवाही उद्योग जगत में नहीं चलती। यहां आपके एक-एक सैकेंड का हीसाब रखा जाता है।उन्होंने कहा कि घड़ी को शोक के लिए ना बांधे, इसके वास्तविक उपयोग को समझनें की कोशीस करें। यहां चार बजे का मतलब चार बजे ही होता है। इसलिए हमें समय के प्रति अपने नजरिये को बदलना होगा। यदि विद्यार्थी जीवन में हम समय का महत्व समझ गये तो हमें बाद में कोई परेशानी नहीं होगी।

विश्वसनीय सूत्र बनाऐं-
खोजी पत्रकारिता में सूत्र और स्रोत की भूमिका सबसे अहम होती है।बड़े बड़े अधिकारी कभी अपको सही सूचना नहीं देंगें। इसलिए अपनी बीट में ऐसे स्त्रोत बनाऐं जो आपको विभिन्न प्रकार की सूचनाएं दे सके। चपड़ासी, कार्यालय सहायक, ड्राइवर आदि आपकी आपकी बहुत मदद कर सकते हैं। अच्छे स्त्रोत होने के बाद खबरें खूद आपके पास चलकर आने लगेंगी। अनेक उदाहरणों के द्वारा ऋषि पांडे ने स्त्रोत की महत्ता विद्यार्थियों को समझाई।

अच्छे श्रोता बनें-
एक पत्रकार को अच्छा श्रोता होना बहुत जरुरी है। आप सीर्फ तब बोलिए जब आप समाचार दे रहेें हो। जिस दिन आपने अपने ज्ञान का अनावश्यक बखान किया आपका पतन हो जाएगा। हमेशा सीखने के लिए तैयार रहें। अपने सीनियर से पूछनें में किसी तरह का कोई संकोच न करें,लोग आपकी मदद अवश्य करेंगे।

खूब पढ़ें जिज्ञासु बनें-
एक पत्रकार को पढ़ाई से भागना नहीं चाहिए, उसे जिज्ञासु प्रवृति का होना चाहिए।
कानूनों की जानकारी, तकनीकी जानकारी तथा अपने आप को अपडेट रखने के लिए खूब पढ़ना चाहिए। पढ़ाई सें हमें जी नहीं चूराना चाहिए। हर क्षेत्र की जानकारी हमें होनी चाहिए।

बने साइबर फ्रेंडली-
आधुनिक सूचना क्रांति के इस दौर में अपको इंटरनेट और न्यू मीडिया की अच्छी समझ होनी चाहिए। बहुत से हाई प्रोफाइल अपराधों के तार सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट से जूड़े होते हैं। इसी तरह खोजी पत्रकार को तकनीक के क्षेत्र में हो रही प्रगति तथा विकास पर नजर रखनी चाहिए। पांडेय ने कहा कि खोजी पत्रकार को अपने आप को तकनीक से अपडेट रखना चाहिए।
विभागाध्यक्ष वीरेन्द्र सिहं चौहान ने विद्यार्थियों से कहा कि वे अपनी लेखन क्षमता को तराशे।क्योंकि उद्योग को अच्छे लेखकों की बहुत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रतियोगिता के इस दौर में मेहनत और कौशल के बगैर काम नहीं चल सकता। इस
अवसर पर प्राध्यापिका पूनम कालेरा तथा प्राध्यापक कृष्ण कुमार, सन्नी गुप्पा, सुरेंद्र
कुमार तथा विकास सहारण भी उपस्थित थे।

आलोक तोमर जिंदा है।

किसी महान कवि ने कहा है- जब आए तुम इस जग में, जग हंसा तुम रोये। कुछ ऐसी करनी कर चलो तुम हंसो जग रोये। यह काम इस महान कलमकार ने अपनी लेखनी के दम पर कर दिखाया है। तभी तो मैं कह रहा हुं कि आलोक तोमर जिंदा है। वो जिंदा है हमारी यादों में, अपने लिखे लेखों में और अपने जैसे कलमकारों की कलम की स्याही में। कुछ लोगों का जीवन भी मौत के जैसा होता है और कुछ लोग की मौत एक नये जीवन की तरह। आलोक तोमर उन लोगों में से हैं जिनकी मृत्यु से एक नये जीवन का सूत्रपात होता है।
बेशक वो आज इस दूनिया में नहीं हैं। पर हर काई उनके बारे में जानने को उत्सुक है। कोई इंटरनेट की दूनिया में उन्हें ढूंढ़ रहा है तो को अखबार के पन्नों में। लेकिन वहां कुछ है तो सीर्फ उनकी स्मृतियां। बेबाक और धारदार पत्रकारिता की पहचान रहे आलोक तोमर भले ही सोमवार को पंचतत्व में वीलीन हो गये।पर उन्होंने अपने पीछे लेखन का एक अंदाज छोड़ा है जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
27 दिसंबर 1960 को मध्यप्रदेश के मरैना जिले के रछैड़ गावों में इस महान पत्रकार का जन्म हुआ। जिसने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी। राष्ट्रवादी विचारधारा के अखबार स्वदेश से इन्होंने अपने पत्रकारिता करियर की शुरूआत की। पर उन्हें विशेष पहचान दिलाई जनसत्ता ने। जनसत्ता से पहले उन्होंने यूएनआइ समचार एजेंसी के साथ भी काम किया। वर्ष 2000 में उन्होंने डेटलाइन नामक इंटरनेट न्यूज एजेंसी की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने समाचार पत्र व पत्रिकाओं के लिए समाचार स्त्रोत की भूमिका निभाई।
चर्चित टीवी धारावाहिक जी मंत्री जी की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी।इसी प्रकार बेहद लोकप्रिय टीवी गेम शो कौन बनेगा करोड़पति का स्वरूप तय करने में उन्होंने केंद्रिय भूमिका निभाई थी। केबीसी-1 के सारे सवाल उनकी टीम के द्वारा ही तैयार किए जाते थे। लागों की जुबान पर छाने वाले जुमले कम्प्युटर जी लॉक किया जाए को उन्होंने ही गढ़ा था। आज जब उनके बारे में इतना कुछ जाना है तो लगता है जैसे वो कहीं गये नहीं हैं। आलोक तोमर जैसा पत्रकार शायद ही अब कोई हो पाएगा जो अपनी प्रखर पत्रकारिता के दम पर जाना जाएगा। वो चला गया एक नया जन्म लेने को, छोड़कर अपने पीछे एक जमाना रोने को।

यूजीसी कोचिंग योजना पर प्रेस कॉन्फ्रेंस

मोक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विद्यार्थियों ने पूछे सवाल
सिरसा, 23 मार्च। अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अलपसंख्यक समुदाय के लिए यूजीसी की कोचिंग योजना एक बहुआयामी योजना है। इस योजना के तहत इन विद्यार्थियों को प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करवाई जा रही है। इस योजना के तहत विश्वविद्यालय को 1 करोड़ 20 लाख रूपये की गा्रंट उपलब्ध करवाई जानी है। यह बात एससी, एसटी, मैनोरीटी कोचिंग सैल के समनव्यक डा. राजकुमार सिवाच ने मोक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही। चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की प्रिंट व साइबर मीडिया कार्यशाला के दौरान इसका आयोजन किया गया ।
डॉ. सिवाच ने बताया की यूजीसी की इस योजना के तहत तीन प्रकार की कोचिंग दी जाती है। पहले प्रकार में रेमिडियल कोचिंग का प्रावधान है। इसके तहत विद्यार्थियों को उनके कोर्स के महत्वपूर्ण विषय अथवा उन विषयों की कोचिंग दी जाती है जिनमें वे कमजोर है। दूसरे प्रकार की कोचिंग में विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं की कोचिंग को शामिल किया गया है। इसी प्रकार नेट तथा स्लेट की कोचिंग को भी इस योजना में शामिल किया गया है। डा. सिवाच के अनुसार विश्वविद्यालय को अभी तक इस योजना के लिए 60 लाख रूपये प्राप्त हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि यह योजना 31 मार्च 2012 तक चलेगी। आवश्यकता के अनुसार इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
कोचिंग सैल के समन्वयक ने इस दौरान प्रशिक्षु पत्रकारों के अनेक सवालों के जवाब दिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की तरफ से अभी तक 400 लैक्चर विद्यार्थियों को इसके तहत दिए गए हैं। कम्युनिकेशन स्किल तथा व्यक्तितत्व विकास की कक्षाओं संबंद्यी सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ये कक्षाएं भी जल्द ही शुरू करवा दी जाएंगी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र छात्राएं भी इस बहुआयामी योजना का लाभ उठा सकते हैं।
कार्यशाला के निदेशक तथा विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिहं चौहान ने विद्यार्थियो को प्रेस कॉन्फ्रेंस की बारीकियों से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रश्न संक्षिप्त तथा स्पष्ट होने चाहिएं। चौहान ने इस दौरान प्रतिभागियों को व्यक्तित्व विकास के गुर भी सीखाए। कार्यशाला में शिक्षण सहयोगी सन्नी गुप्ता, विकास सहारण, कृष्ण कुमार, राममेहर व सुरेंद्र कुमार भी उपस्थित थे।

Tuesday, March 22, 2011

विद्यार्थियों ने किया प्रिंटिंग प्रैस का भ्रमण

चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग की प्रिंट व साईबर मीडिया कार्यशाला के बारहवें दिन विद्यार्थियों ने प्रिंटिग प्रैस का भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान विद्यार्थियों ने समाचार-पत्र मुद्रण तकनीक के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। वहां विद्यार्थियों के साथ पल-पल समाचार-पत्र के सम्पादक सुरेंद्र भाटिया ने विद्यार्थियों को मुद्रण के तकनीकी व व्यवहारिक पहलुओं से अवगत करवाया। उन्होंने विद्यार्थियों को में बताया कि किस प्रकार से प्रिंटिग प्रैस द्वारा समाचार पत्रों को प्रकाशित किया जाता हैं। इस प्रक्रिया में प्रकाशन में प्रयोग होने वाले रंगों, कम्प्यूटर कम्पोंजिग,स्क्रीन प्रिंटिग, कॉलम व बॉक्स सम्बंधी जानकारी भी दी गई। साथ ही उन्होंने छात्रों को एक अच्छे समाचार पत्र के प्रकाशन सम्बंधी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी।
भाटिया ने प्रशिक्षु पत्रकारों से कहा कि उन्हें समाचार पत्र के तकनीकी पहलुओं की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्होंनें कहा कि तकनीकी दृष्टिकोण से भारतीय समाचार पत्र उद्योग ने विकास के अनेक सौपान तय किए हैं। आज अधिकांश समाचार पत्र बेहद आकर्षक और खूबसूरत रूप मे हमारे हाथ में है। प्रतियोगिता में बनें रहने के लिए आपको तकनीक से अपडेट रहना पड़ता है। भाटिया ने कहा कि विषय वस्तु के साथ साथ पैकेजिंग भी बहुत महत्व रखती है। इस दौरान विद्यार्थियों ने प्लेट बनाने से लेकर समाचार पत्र की फोल्डिंग तक की प्रक्रिया के संबंध में विस्तार से जाना। पल पल समाचार पत्र के लकनीकी स्टाफ ने विद्यार्थियों के मुद्रण से संबंधित विभिन्न सवालों के जवाब दिए।
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष व कार्यशाला के संचालक वीरेंद्र सिंह चौहान ने विद्यार्थियों से कहा कि यदि वे समाचार पत्र उद्योग में रोजगार प्राप्त करना चाहतें हैं, तो उन्हें तकनाकी रूप से भी अपने आप को सक्षम बनाना होगा। उन्होंने कहा कि समाचार पत्र उद्योग तेजी से विकास कर रहा है। यहां रोजगार की अनेक संभावनाएं हैं, बस जरूरत है अपने आप को उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप तैयार करने की। इस दौरान शिक्षकगण कृष्ण कुमार, सन्नी गुप्ता, विकास सहारण,सुरेन्द्र कुमार तथा राममेहर पालवां भी मौजूद थे।

Monday, March 21, 2011

बिन पानी सब सून

इस दूनिया के क्या क्या रंग है, इसे समझना बहुत मुश्किल है। और इससे भी मुश्किल है इंसान की फितरत को समझना। स्वार्थी और खुदगर्ज होना तो कोई हमसे सीखे। अभी होली से पहले हमने जो संकल्प लिए उससे तो एक बारगी लगा जैसे हमने ही जल बचाने का बीड़ा उठा लिया हो। लेकिन हम भूल गये थे कि ये रघुकुल नहीं हैं। ये हमारा अपना युग, कलयुग है। यहां अच्छा करना तो दूर सोचना भी पाप है। और हमारे युग की सबसे बड़ी निशानी तो यही है कि वादे और जिम्मेदारियां जितनी जल्दी भुला दी जाए उतना ही अच्छा है।यही हमने होली पर किया, जमकर जल बहाया । एक पल भी हमने ये नहीं सोचा की आखिर हम नुकसान किसका कर रहे हैं।
हम बहुत स्वार्थी हैं। पर मुझे तो लगता है कि हमें स्वार्थी होना भी नहीं आता। पानी को व्यर्थ बहाते वक्त हम अपने कल के स्वार्थ को क्यों भूल जाते हैं। तो क्या अब मुझे आपको स्वार्थी होना सीखाना पड़ेगा ? अपने लिए न सही तो अपनों के लिए स्वार्थी हो जाइए। जिस दिन आपने यह सीख लीया, समझो आपका धरती पर आना सफल हो गया। आज जल दिवस है। तो सोचिए, की इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ? धरती का जल स्तर लगातार गीरता जा रहा है। का तापमान बढ़ रहा है, हर तरफ प्राकृतिक विपदाओं का कहर है। और हम हैं कि समझते हि नहीं।
अपने आप से भागना छोडिए, अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पहचानना सीखीए। वरना हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या जवाब देंगे। तो आइए इस जल दिवस पर ये कोशिश करें कि हम अपने स्वार्थ के लिए ही सही पर जल को बचाएंगें। यदि हम सीर्फ इतना भर भी कर पाए तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून , पानी गए ऊबरे मोती मानस चूनतो आइए प्रकृति की अमुल्य निधि जल को बचाने का प्रयास करें