64 वां स्वतंत्रता दिवस पूरे भारत वर्ष के लिए आजादी की एक नई सुबह लेकर आया जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश अन्ना हजारे के साथ कुछ इस तरह से खड़ा हुआ कि स्वतंत्रता संघर्ष की यादें ताजा हो गई। सड़कों और चौराहों पर होते भारत माता के जयघोष आसमां में गूंजते इंकलाब जिंदाबाद के नारे अहिंसक रूप से विकराल रूप धारण करती लोगों की भीड़ ,तिरंगे के रंग में रंगे बच्चे, बूढ़े ,जवान और महिलाएं उत्साह से ठीक वैसे ही परिपूर्ण नजर आए जैसा अक्सर महात्मा गांधी के आंदोलनों में नजर आता था। स्वतंत्रता के 64 वर्षों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब पूरा देश किसी मुददे पर एक साथ उठ खड़ा हुआ है। 72 वर्षीय अन्ना हजारे की देश में चली आंधी को देखकर तो यही लगता है कि यह वह उबाल है जो वर्षों से हर भारतीय के दिल में दबा हुआ था और बस किसी चिंगारी भर का इंतजार कर रहा था। अन्ना ने भ्रष्टाचार से आहत जनता की नब्ज टटोली तो यह चिंगारी बारूद बनकर भड़क उठी । इस चिंगारी में कितनी आग है इसकी झलक हम महानगरों की सड़को से लेकर गांव की गलियों तक में देख सकते हैं।
अन्ना हजारे ने खुद इसे आजादी की दूसरी लड़ाई करार दिया है। स्वतंत्रता के बाद ऐसा जनसंघर्ष कुछ हद तक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में जरू र देखने को मिला था लेकिन जो जनसमर्थन अन्ना ने हासिल किया उसे देखकर हर कोई दंग है। हो भी क्यों नहीं उम्र के सात दशक पार कर चुके इस समाजसेवी के चेहरे के भावों में जो तेज और हौसलों में जो बुलंदी है उसने भारत की सोई आत्मा को फिर से जगा दिया है। अन्ना ने पूरे भारत वर्ष को एकता के सूत्र में पिरो दिया है आज देश की तस्वीर को देखकर लगता है वाकई भारत बदल रहा है। अब यहां के लोग देशहित के मुद्दे पर बिना किसी भेद भाव के एकसाथ लड़ने को उत्सुक है।
हाथों में आजादी की मशाल लिए और मन में जनलोकपाल बिल को पास करवाने का जज्बा लिए लोगों का समर्थन अन्ना के पक्ष में विकराल रूप लेता जा रहा है। 72 वर्षीय अन्ना के आगे सरकार अब बेबस नजर आ रही है। आलम ये है कि सत्तापक्ष के एमपी और एमएलए धीरे धीरे अन्ना की बातों में अपना समर्थन देने लगे हैं । जब से अन्ना की टीम ने सांसदों और मंत्रियों के आवासें पर धरना देने का फरमान सुनाया है तब से सांसदों और मंत्रियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। अब ये लोग अपने अपने क्षेत्रों में अपनी साख बचाने के लिए जनलोकपाल बिल पर अपना स्टेंड स्पष्ट करने को मजबूर है ये लोग किसी भी किमत पर जनसमर्थन नहीं खेना चाहेंगें ।
अनशन से लगातार बढ़ती कमजोरी ने उनके शरीर को जरूर कमजोर बना दिया है परंतु उनके चेहरे पर वो जोश अब भी नजर आता है जिसन पूरे हिंदुस्तान को उनके साथ खड़ा कर दिया है अन्ना ने यहां तक कह दिया है कि उन्हें मरने का डर नहीं है क्योंकि उनकी मौत से हजारों अन्ना खड़े होंगे उनकी किडनी में कुछ खराबी आई है उसपर अन्ना का कहते है कि यदि उनकी किडनी खराब भी हो गई तो उन्हें किडनी देने वाले बहुत हैं। अन्ना कि यही जज्बा और जोश उनके जनसमर्थन को बढ़ाता जा रहा है।
अनशन का अंजाम चाहे जो हो लेकिन जो जोश और जज्बा अन्ना व उनके समर्थको में नजर आ रहा है उससे तो यही लग रहा है कि देर सबेर सरकार को झुकना ही पड़ेगा और अच्छा होगा यदि सरकार आवाम की इस मांग को समय रहते पूरा करें अन्यथा सरकार और देश दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है । आज हर कोई भ्रष्टाचार से परेशान है क्योंकि एक आम आदमी को आए दिन इसका शिकार होना पड़ता है अब जब अन्ना ने लोगों को इससे मुक्ति दिलाने का सपना दिया है तो लोगों की भावनाएं मूर्त रूप लेकर सामने आ रही है। सरकार को चाहिए कि वह समय रहते कोई उचित समाधान निकाले और देशवासियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करें।
आजादी का जश्न हो लिया पर गुलामी बाकी है भारत माता कह रही खतरे में आजादी है। गांधी,आजाद और भगत सिंह अब तुम्हें बनना होगा वो लोग फिरंगी थे पर तुम्हें अपनों से लड़ना होगा। कुछ नहीं होगा घर दुबके रहने से, कर प्रण बाहर निकलना होगा। ये वक्त है कुछ कर दिखाने का कांटों भरी इस राह पर तुम्हें अब नंगें पांव निकलना होगा। थोड़ी हिम्मत, थोड़ा जज्बा और थोड़ा जुनून चाहिए भारत माता कह रही है एक आजादी और चाहिए।
आजादीकेइसपवनअवसरपरसभीहिन्दुस्तानियोंकोप्रभातकासलामदोस्तोयेसमयसिर्फजश्नकानहींहै। येहमारेआत्ममंथनकाभीसमयहैकीहमनेअपनेउनमहानदेशभक्तोंकीसमाधीपरसिर्फफूलचढाएंहैयाउनकेसपनोंकोभीहकीकतकेपंखदिएहैंयानहीं. इतिहास के पन्ने पलटतें हैं तो विश्वास नहीं होता कि हम उस भारतवर्ष के नागरिक हैं जो कभी सोने की चीड़िया था।
आज जो मंजर हमारे सामने है, उसे देखकर कौन कह सकता है कभी यह पिंजर सोने की चीड़िया रहा होगा। हर तरफ फैला भ्रष्टाचार, भूख और लाचारी से तड़पते लोग, रोजगार की राह देखती करोड़ों आंखे, फुटपाथ पर आशियाने का ख्वाब देखते बेघर, हर तरफ मासूमों के शिकार के लिए घात लगाए बैठी भेडियों की फोज, नेताओं और दबंगों की चक्की में पीसते आजाद भारत के गुलाम परिंदे। ये तस्वीर है मेरे आज के भारत की।
आजादी के छह दसक बाद भी यह तस्वीर क्यों नहीं बदली। कभी-कभी लगता है कि अच्छी थी वो गुलामी, कम से कम अपनों से लुटने का मलाल तो नहीं होता। 2जी स्पैक्ट्रम, काॅमनवैल्थ गैम्स, आदर्स सोसाईटी और अनाज घोटाला हाल ही के जख्म है, इतिहास तो और भी भयानक है। ये सब महाघोटाले अंग्रेजों द्वारा की गई लूट से कहीं बढ़कर है। येसमयहैकीहमकुछनयाकरनेकाप्रणलेऔरइसदेशकोफिरसेविश्वकासरताजबनायें। तभीहमवास्तविकआजादीकेजश्नकोमनकेकाबिलहोपाएँगे।
हजारों शहिदों की कुर्बानी से आजादी हमें मिली हमारे मुरझाए होठों पर हंसी तब खिली। हवा ने बहना छोड़ दिया था फूल भी खिलना भूल गए थे वो कुछ ऐसा मंजर था जिसने देखा वो कांप गए थे। न हवा में ये रवानी थी न मस्ती में जवानी थी। हर लब पर था ताला पड़ा न आवाज में बुलंदी थी न गीतो में था मधुर रस अंग्रेजों के जुल्म सहने को हर हिंदुस्तानी था बेबस। पर जब चली हवा इंकलाब की गौरों का साम्राज्य ढ़ह गया जब उठी लहर देश प्रेम की अलविदा फिरंगी कह गया । सोने की चिड़िया अब आजादी से चहक रही है उन्नती और विकास की नई कहानी कह रही है। प्रभात इंदौरा
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प्रभात इंदौरा चंडीगढ़ एक तरफ जहां लोग बेटी को बोझ समझकर भ्रूण हत्या जैसे कुकृत्य में लिप्त हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी सफलता और कामयाबी का सारा क्रेडिट अपनी बेटी को देते हैं। याक्षाी वेडिंग बाजार के ओवनर सतिन्द्र कुमार भी इन्हीें लोगों में से एक है बकौल सतिंद्र वे आज जो कुछ भी है वह सब उनकी बेटी की वजह से है, वे कहते हैं कि वे लोग बहुत नासमझ है जो घर की लक्ष्मी को घर आने से पहले ही परलोक पहुंचा देते हैं।याक्षी वेड्रिग बाजार के नये शो रूम के उदघाटन से पहले सतिन्द्र ने अपनी सफलता के राज दिनभर के साथ सांझा किए।
चंडीगढ़ की खूबसूरती ने किया आकर्षित- चंडीगढ़ की खूबसूरती के बारे में बहुत कुछ सुना था इसलिए 23 साल पहले मैं अपने शहर करनाल को छोड़कर यहां आया। जब मैं अपने सपनों के इस शहर में आया तो मैं 2 साल का था।यहां के खुले वातारण माहौल और लोगों की जिंदादिली को देखकर कुछ ऐसा करने की इच्छा प्रबलित हुई जिससे मैं यहां के लोगों के सपनों को हकिकत में बदल सकूं।
करियर-
करनाल में मेरे बडे भाई की मनियारी की दुकान थी वे होलसेल का काम किया करते थे। भाई के इस काम से मेरे मन में भी यहीे काम करने का विचार आया इसी के चलते मैंने लगभग 16 वर्षो तक चंडीगढ़ में प्रिति फैशन के साथ काम किया। 1993 में मेरी शादी हो गई।2010 में मैंने सेक्टर 7 स्थित याक्षी वेडिंग बाजार की पार्टनरशिप के साथ सुरूआत की। इस शो रूम का नाम मैंने अपनी छोटी बेटी याक्षी के नाम पर रखा। मैंने राजन वाॅच कंपनी और एक अन्य को फ्रेंचाइजी भी दी।
ट्राइसिटी के सहयोग ने दिया हौसला- ट्राइसिटी के जिंदादिल लोगों ने मेरे काम की बहुत सराहना की लोगों के प्यार और उनसे मिली सरहना के कारण ही मुझे और मेरे काम को विशेष पहचान मिली। एक समय था जब राजा महाराजा और रानियों की पोशाके हमें आकर्षि करती थी।हर कोई उन जैसे शाही लिबास पाने की कामना करता थ। परंतु इतने महंगे कपड़़़़़़़़़़ेे पहनना हर किसी के बस की बात नहीं होता। जकिन मैं तो लोगों के इसी सपने को साकार करना चाहता था कि महंगे से महंगा लिबास भी हर किसी के पहुंच में हो। और हम खुश हैंे कि हम लोगों को वो सब दे पा रहे हैंे जो कभी सिर्फ उनका सपना था। याक्षी वेडिंग बाजार में हर प्रकार के लिबास रेंट पर उपलब्ध है जिससे लोग कम पैसे शाही लिबास पहनने के आनंद को अनुभव कर सकते हैं।
खास है याक्षी वेडिंग बाजार- लोगों के सपनों को हकिकत का में बदल रहा हमारा शो रूम अपने आप में बहुत खास है। याक्षी वेडिंग बाजार ही एकमात्र स्थान है जहां से आप किराये पर बिल्कुल नयी पोशाक प्राप्त कर सकते हैं। यहां एक ही छत के नीचे आप अपने मन की कई अन्य वस्तुएं भी खरीद सकते हैं। यहां से खरीददारी करना सपनों को सच करने के समान है। यह शो रूम अपनी तरह का एक विशिष्ट शोरूम है।
8 अगस्त से शो रूम की नयी शाखा की शुरूआत चंडीगढ़ सेक्टर 17डी में हो रही है। इसका नाम भरी मैंने अपनी बेटी याक्षी के नाम पर ही रखा है। खास बात ये है कि इसमें मेरा कोई अन्य हिस्सेदसा नहीं हैं।
पाठकों को संदेश-
मैं पाठकांे से यही कहना चाहूंगा की सपने देखना अच्छा है लेकिन हमें उन्हे पूरा करने के लिए भी दिल से प्रयास करना चाहिए। हमारी समस्या है कि हम सपने तो बडे बडे देखते हैं परंतु उन्हें पूरा करने के लिए कोई विशेष मेहनत नहीं करते और यहीं पर हम मात खा जाते है और हमारे सपने सिर्फ सपने बनकर रह जाते हैं। एक और बात जो मैं विशेष तौर पर कहना चाहुंगा कि कन्या कभी बोझ नहीं होती वे तो हमारा सहारा होती है और घर की लक्ष्मी इसलिए हमें कभी भी कन्या भ्रूण हत्या जैसा कुकृत्य नहीं करना चाहिए और समाज की इस मानसिकता को बदलने के लिए प्रयास करने चाहिए ताकि बेटी को भी जीने का हक मिल सके।
मिल सकता है खुदा भी इबादत से पर सच्चा दोस्त नहीं मिलता । मिले हैं जो चंद दोस्त किस्मत से, रखना उन्हें हिफाजत से। हर गम के मरहम हैं वो, हर खुशी के हिस्सेदार। उनके संग बिताया हर पल रखना तुम संजोकर यार। इस नफरत की दुनिया में, नहीं मिलेगा ऐसा प्यार। दोस्त के संग बिताया हर पल होता है बहुत यादगार। थाम लेते हैं वो हाथ हमारा जब भी हो हमारे नजदीक मझदार। गर कभी रूठ जाए वो तो प्यार से उसे मनाना। वो कितना खास है तुम्हारे लिए उसको यह बताना। नफरत के अंधियारें में दोस्त है, सबसे बड़ा सहारा प्रभात। हर मुश्किल में हर खुशी में तुम देना उसका साथ। दोस्त बिन अधूरी है हर खुशी, हर मस्ती। दोस्तों से ही है गुलजार हमारी बस्ती। ॅफेसबुक हो, ओरकुट हो या हो गली मोहल्ला। क्लास रूम की मस्ती हो या हो कॉलेज का हो-हल्ला पार्टी की महफिल हो हो नूरा या सूरा । बिन दोस्त के है, ये सब अधूरा